Waiting in 10s

सियाचिन में सेना के बेस कैंप पर हिमस्खलन, 3 जवान शहीद

लद्दाख के सियाचिन ग्लेशियर से एक दिल दहला देने वाली खबर आई है। यहां हुए भीषण हिमस्खलन में भारतीय सेना के तीन जवान शहीद हो गए हैं। इनमें से दो अग्निवीर थे। जानकारी के मुताबिक, जवान उस समय पेट्रोलिंग पर थे जब एवलांच ने उनकी पोस्ट को अपनी चपेट में ले लिया।

सेना की बचाव टीमें तुरंत अलर्ट हो गईं और रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया गया। हालांकि, सियाचिन की बर्फीली परिस्थितियों में यह काम बेहद मुश्किल है।

कौन थे शहीद जवान?

शहीद हुए तीनों जवान महार रेजीमेंट से थे। वे गुजरात, उत्तर प्रदेश और झारखंड के रहने वाले थे। अभी पांच और जवानों के फंसे होने की खबर है। सेना के मुताबिक, एक कैप्टन को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है।

मौत से भी खतरनाक जंग: सियाचिन की हकीकत

सियाचिन को दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र कहा जाता है। यहां सैनिकों को न सिर्फ दुश्मन का सामना करना पड़ता है, बल्कि -60 डिग्री की जानलेवा ठंड, तेज हवाएं और हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी जूझना पड़ता है।

  • यह हादसा बेसकैंप के पास 12,000 फीट की ऊंचाई पर हुआ।
  • उत्तरी ग्लेशियर क्षेत्र में एवलांच आया, जहां ऊंचाई 18,000 से 20,000 फीट तक है।
  • 1984 में ऑपरेशन मेघदूत से अब तक मौसम और हादसों में 1,000 से ज्यादा सैनिक शहीद हो चुके हैं।

कैसे चल रहा है बचाव अभियान?

जैसे ही हिमस्खलन की खबर मिली, सेना और वायुसेना ने मिलकर तुरंत रेस्क्यू मिशन शुरू किया।

  • अवलांच रेस्क्यू टीमें (ART) मौके पर पहुंच गईं।
  • चीता और Mi-17 हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल घायलों को निकालने और अस्पताल पहुंचाने के लिए किया जा रहा है।
  • DRDO के ऑल-टेरेन व्हीकल (ATV) ब्रिज, डायनीमा रस्सियां, और चिनूक हेलिकॉप्टर से सप्लाई और रेस्क्यू आसान हुआ है।
  • ISRO के टेलीमेडिसिन नोड्स और HAPO चैंबर्स (हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडिमा) जैसी सुविधाएं भी जुटाई गई हैं।

फिर भी, सियाचिन की जमी हुई बर्फ और खतरनाक मौसम हर बचाव ऑपरेशन को बेहद चुनौतीपूर्ण बना देता है।

क्यों है सियाचिन इतना अहम?

सियाचिन ग्लेशियर 76 किलोमीटर लंबा है और कराकोरम रेंज में स्थित है। यह इलाका भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित माना जाता है।

  • 1949 के कराची समझौते में इसकी सीमा स्पष्ट नहीं की गई थी।
  • 1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए इस पर कब्जा कर लिया।
  • सियाचिन, पाकिस्तान अधिकृत गिलगित-बाल्टिस्तान और चीन को दी गई शक्सगाम घाटी के बीच रणनीतिक दीवार की तरह है।

यही वजह है कि भारत इस क्षेत्र को छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता। लेकिन यहां सैनिकों का सबसे बड़ा दुश्मन गोली नहीं, बल्कि मौसम है।

सियाचिन की खतरनाक यादें

  • 2016: हिमस्खलन में 10 जवान दब गए थे। लांस नायक हनुमंथप्पा कोप्पड़ 6 दिन बाद जिंदा निकले, लेकिन बाद में शहीद हो गए।
  • 2019: चार जवान और दो पोर्टर हिमस्खलन में शहीद हुए।

ये हादसे बार-बार साबित करते हैं कि सियाचिन में ड्यूटी सिर्फ देश की रक्षा नहीं, बल्कि मौत से जंग लड़ने जैसा है।

You may also like...