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चतेश्वर पुजारा ने क्रिकेट को कहा अलविदा

Chateshwar Pujara said goodbye to cricket
Chateshwar Pujara said goodbye to cricket

टेस्ट क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज़ों में से एक चतेश्वर पुजारा ने आखिरकार क्रिकेट को अलविदा कह दिया। समय के साथ लड़ने की उनकी कला अब मैदान पर नज़र नहीं आएगी। पुजारा का बल्ला जितना शांत दिखता था, उतना ही मज़बूत भी था। उन्होंने कभी लाइमलाइट के पीछे भागने की कोशिश नहीं की, बल्कि हमेशा अपनी सादगी और संयम से क्रिकेट को जिया।

ऑस्ट्रेलिया रहा उनका सबसे बड़ा इम्तिहान

हर महान बल्लेबाज़ की तरह पुजारा ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ निकाला। उनके खिलाफ, चाहे घर हो या बाहर, पुजारा ने 49.38 की औसत से रन बनाए और पांच शतक ठोके। वहीं, उनसे पहले नंबर 3 पर खेलने वाले राहुल द्रविड़ ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 38.67 की औसत से केवल दो शतक बनाए थे।

2018-19 की ऐतिहासिक सीरीज़ में तो पुजारा ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाज़ों की सबसे बड़ी दीवार बन गए थे। उस सीरीज़ में उन्होंने 521 रन बनाए, 1258 गेंदों का सामना किया और तीन शतक ठोके। उनकी यह पारी भारतीय क्रिकेट इतिहास में उतनी ही यादगार रहेगी जितनी 1970-71 में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ सुनील गावस्कर की 774 रन की पारी।

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करियर की उपलब्धियां

पुजारा ने भारत के लिए 103 टेस्ट खेले और 7195 रन बनाए, जिसमें 19 शतक शामिल हैं। उनका औसत 43.60 रहा। करियर के आखिरी समय में थोड़ी गिरावट ज़रूर आई, लेकिन उनके योगदान पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

उनका नाम हमेशा इसलिए भी लिया जाएगा क्योंकि उन्होंने भारत को पहली बार ऑस्ट्रेलिया की धरती पर टेस्ट सीरीज़ जिताने में सबसे अहम भूमिका निभाई।

कोहली के दौर का ‘आइसमैन’

अगर विराट कोहली भारतीय क्रिकेट के “आग” थे तो पुजारा उसकी “बर्फ”। जहां कोहली आक्रामकता से रन बनाते थे, वहीं पुजारा धैर्य और संयम से विपक्षी गेंदबाज़ों को थका देते थे।

कोहली की कप्तानी में भारत ने जितनी बड़ी जीतें हासिल कीं, उनमें पुजारा की अहम भूमिका रही। चाहे 2017 में बेंगलुरु की स्पिन वाली पिच पर उनका शानदार शतक हो या रांची में डबल सेंचुरी, पुजारा हमेशा टीम को मज़बूती देते रहे।

संघर्ष और वापसी

पुजारा का करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ के बाद जब उनका करियर नई ऊंचाई पर जाने की उम्मीद थी, तभी गिरावट शुरू हो गई। उन्हें टीम से बाहर किया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। काउंटी क्रिकेट और घरेलू क्रिकेट में ढेरों रन बनाए और बार-बार वापसी की।

आखिरी मज़बूत किला ढह गया

पुजारा के जाने के साथ ही टेस्ट क्रिकेट ने अपने आखिरी “स्टोनवॉल” को भी खो दिया। आज के “बाज़बॉल” और तेज़ खेल के ज़माने में शायद ही कोई और पुजारा जैसा बल्लेबाज़ दोबारा नज़र आए।

अब वह शायद कमेंट्री में अपना नया सफर शुरू करेंगे। मैदान पर उन्होंने जैसे सादगी और ईमानदारी दिखाई, वैसा ही अंदाज़ उनकी आवाज़ में भी झलकेगा।

पुजारा भले ही बल्ला रख चुके हों, लेकिन भारतीय क्रिकेट के इतिहास में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।

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